जालंधर/सोमनाथ कैंथ
बदलते लाइफ स्टाइल के चलते बहुत अधिक खाना और बहुत कम एक्सरसाइज हमारे जीवन का हिस्सा बनता जा रहा है। जिस कारण मेटाबोलिक सिंड्रोम जोकि हृद्य रोग, स्ट्रोक और टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को बढ़ता है। मेटाबोलिक सिंड्रोम अन्य जटिल समस्याओं को भी जन्म दे सकता है जैसा कि धमनियों की दीवारों में एथेरोस्क्लेरोसिस अर्थात प्लाक बिल्डअप की समस्या पैदा हो सकती है । इससे धमनियां(आर्टरीज) मोटी और सख्त हो सकती हैं, जिस कारण रक्त का प्रवाह कम हो जाता है और लकवा जैसी समस्या भी हो सकती है।
धमनियों का मुख्य काम हृदय से ऑक्सीजन को शरीर के अन्य भागों में ले जाना और छोटे से बड़े अंग तक ब्लड ले जाना है। वैसे तो प्लाक दांतों पर जमता है लेकिन अधिक कलेस्ट्रॉल और मधुमेह के कारण प्लाक धमनियों में भी जम जाता है।
कलेस्ट्रॉल के कारण धमनियों में प्लाक बन जाए तो शरीर के अंगों में ब्लड पहुंचने में दिक्कत हो सकती है और कई बार प्लाक के कारण हार्ट अटैक भी हो सकता है।
लाल मिर्च में केप्सेसिन नामक तत्व होता है, जोकि प्लाक के गठन को कम करने में मदद करता है। हालांकि प्लाक को दूर करने में केप्सेसिन की भूमिका के बारे में बहुत कम अध्ययन है लेकिन लाल मिर्च खाने से अगर हार्ट अटैक से बचा जा सकता है तो इसे जरूर लाल मिर्च को जरूर खाया जाना चाहिए। लाल मिर्च की प्रॉपर्टीज की बात की जाए तो इसमें पाया जाने वाले केप्सेसिन घटक में एंटी-इंफ्लामेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। यह गुण प्लाक के गठन को रोकने में मददगार हो सकते हैं।
नैशनल लेबोरेटरी ऑफ मेडिसिन की एक रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग नियमित रूप से मिर्च खाते हैं, वे उन लोगों की तुलना में अधिक स्वस्थ और लंबे समय तक जीवित रहते हैं जो नहीं खाते हैं। पशु प्रयोगों से पता चलता है कि मेटाबॉलिक सिंड्रोम के विकास के जोखिम को कम करने के लिए, तीखी मिर्च में सक्रिय सिद्धांत, आहार कैप्सेसिन के लिए एक चिकित्सीय क्षमता है। यह एक आकर्षक सिद्धांत है क्योंकि कैप्सैसिन हजारों वर्षों से पाककला का मुख्य हिस्सा रहा है।
यही नहीं लाल मिर्च खाने से बॉडी का मेटाबॉलिज्म भी तेज होता है, जिससे कैलोरी बर्न होती है। इस वजन भी कम होता है।