अंधविश्वास में फंस कर ईसाई बन रहे दलित आरक्षण का हक भी रहे हैं गंवा


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जालंधर/सोमनाथ कैंथ
उत्तर प्रदेश के जिला बलरामपुर के बहुचर्चित धर्मांतरण प्रकरण को लेकर जलालुद्दीन उर्फ ‘छांगुर बाबा’ सुर्खियों में है। धर्मांतरण के रैकेट के खुलासे के बाद से छांगुर की आलीशान कोठी पर बुलडोजर चला दिया गया है। बताया जाता है कि किसी समय छांगुर बाबा साइकिल पर अंगूठियां और नग बेचा करता था। किसी ने मानसिक रूप से परेशान होकर धर्मांतरण किया तो किसी का ब्रेनवॉश का किस्सा।
यहां तक मानसिक उत्पीड़न की बात है तो आज भी लोग अंधविश्वास में जी रहे हैं। अंगूठियों और नगों से किस्मत बदलने की दौड़ में लगे हैं। आर्थिक रूप से पिछड़े और अंधविश्वस में फंसे लोग दूसरे धर्मों को अपनी रहे हैं, गांवों के गांव दूसरे धर्मों को अपना रहे हैं। सबसे ज्यादा लोग अब ईसाई धर्म में जा रहे हैं। एक बात साफ है कि ईसाई धर्म को अपनाने वाले ज्यादातर लोग दलित समुदाय से हैं ।
हालांकि आर्टिकल 25 के तहत हर नागरिक को अपनी पसंद का धर्म मानने का अधिकार है।

वहीं जो दलित लोग ईसाई धर्म अपना रहे हैं, उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं कि ईसाई बनने का बाद उनका आरक्षण सीधे रूप से खत्म हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट भी इस संबंध में अपना फैसला सुना चुका है। गत वर्ष आरक्षण के हक को लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट की बेंच के पास आया था।
तब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सिर्फ आरक्षण का लाभ लेने के लिए धर्म परिवर्तन करना संविधान के मूल भावना के खिलाफ है।

यह था पूरा मामला 
पुडुचेरी की एक महिला सी. सेल्वानी ने अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के लिए अप्लाई किया था, लेकिन उसके धर्म परिवर्तन करने के बाद अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र मांगे जाने पर अधिकारियों ने उसे जाति प्रमाण-पत्र देने से मना कर दिया था। इसके बाद मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा। मद्रास हाईकोर्ट द्वारा जाति प्रमाण-पत्र नहीं दिए जाने पर महिला ने 24 फरवरी 2023 को मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी।
सेल्वरानी का कहना था कि वह हिंदू धर्म मानती है और वल्लुवन जाति से है, जो 1964 के संविधान (पुडुचेरी) अनुसूचित जाति आदेश के तहत आती है। इसलिए, वह आदि द्रविड़ कोटे के तहत आरक्षण की हकदार है। सेल्वरानी ने दलील दी कि जन्म से ही वह हिंदू धर्म मानती है और मंदिरों में जाती है, हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करती है।

 ग्राम प्रशासनिक अधिकारी की रिपोर्ट 
बेंच ने मामले के तथ्यों का अध्ययन करने के बाद कहा कि ग्राम प्रशासनिक अधिकारी की रिपोर्ट और दस्तावेजी सबूतों से साफ है कि उसके पिता एससी समुदाय से थे और मां ईसाई थीं। उनकी शादी ईसाई रीति-रिवाजों से हुई थी। इसके बाद, सेल्वरानी के पिता ने बपतिस्मा लेकर ईसाई धर्म अपना लिया। उसके भाई का बपतिस्मा 7 मई, 1989 को हुआ। सेल्वरानी का जन्म 22 नवंबर, 1990 को हुआ और उसका बपतिस्मा 6 जनवरी, 1991 को विलियनूर, पुडुचेरी के लूर्डेस श्राइन में हुआ। इसलिए, यह स्पष्ट है कि सेल्वरानी जन्म से ईसाई थी और वह एससी सर्टिफिकेट के लिए हकदार नहीं है।
फैसले में क्या कहा बेंच ने 
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस आर. महादेवन पर आधारित बेंच ने कहा कि महिला ईसाई धर्म का पालन करती है और नियमित रूप से चर्च जाती है। इसके बावजूद, वह नौकरी के लिए खुद को हिंदू और शिड्यूल कास्ट का बता रही है। ऐसा दोहरा दावा ठीक नहीं है। बेंच ने कहा कि जो व्यक्ति ईसाई है, लेकिन आरक्षण के लिए खुद को हिंदू बताता है, उसे SC दर्जा देना आरक्षण के उद्देश्य के खिलाफ है। यह संविधान के साथ धोखा है।
जस्टिस महादेवन ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। आर्टिकल 25 के तहत हर नागरिक को अपनी पसंद का धर्म मानने का अधिकार है। कोई व्यक्ति दूसरे धर्म में तब जाता है जब वह उसके सिद्धांतों और विचारों से प्रभावित होता है। लेकिन अगर धर्म परिवर्तन का मकसद सिर्फ आरक्षण का लाभ लेना है, तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसे लोगों को आरक्षण देना, आरक्षण की नीति के सामाजिक उद्देश्य को विफल करेगा।

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क्यों लोग बन रहे ईसाई, भूत-प्रेत भ्रमजाल, असामनात, भेदभाव या अन्य कारण
सवाल यह है कि लोग ईसाई बन क्यों रहे हैं। पहला कारण तो आज भी जातिगत भेदभाव से मुक्ति नहीं मिली है। कुछ राज्यों में तो विवाह के समय घोड़ी चढ़ना भी दलितों के लिए गुनाह बन जाता है। ऐसे कई मामले हैं जो हत्या का कारण भी बने चुके हैं। इसके बाद बात आती है लालच की। आरोप लगाए जाते हैं कि दलित पैसों की खातिर ईसाई बन रहे हैं। वहीं बेहतर अवसर का लालच भी सामना आता है।
एक बड़ा कारण बीमारियों से तंग आकर लोग ईसाई धर्म में जा रहे हैं। जब भी किसी को किसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति बेहतर इलाज नहीं हो पाने पर चर्चों में जाता है तो परिवार पर किए कराए की बातें बताकर परिवार को और मानसिक रूप में गुलाम बनाया जाता है। अंधविश्वास में फंसे लोग अपनी बीमारी से छुटकारा पाने और इलाज के लिए सहायता के कारण ईसाई धर्म अपना रहे हैं।

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